Sehat Ki Baat: यदि आपके बच्चे ने अभी तक बोलना शुरू नहीं किया है, उसे चलने में दिक्कत हो रही है, बात करते समय आंखों से आंख मिलाने में कतराता है, स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं को नजरअंदाज करता है, तो यह लक्षण सामान्य नहीं हैं. ये सभी बातें आपके बच्चे के बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य के शुरूआती लक्षण हो सकते हैं. लिहाजा, इल लक्षणों को नजरअंदाज करने की बजाय, तत्काल आपको अपने चाइल्ड स्पेशलिस्ट से इन बातों का जिक्र करना चाहिए. चाइल्ड स्पेशलिस्ट की सलाह पर आप चाइल्ड साइकेट्रिस्ट से भी अपनी समस्या साझा कर सकते हैं.
कोची के अमृता हॉस्पिटल की वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक डॉ. धन्या चंद्रन के अनुसार, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर ज्यादातर लोगों का नजरिया बेहद लापरवाह रहा है. बच्चों की खराब होती मानसिक सेहत को तब तक नजरअंदाज किया जाता है, जब तक पानी सिर के ऊपर से न गुजर जाए. ऐसी स्थिति में, समय के साथ बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता चला जाता है और कई बार बच्चों को उम्र भर साइक्रेटिक ड्रग्स पर निर्भर रहना पड़ सकता है. इन परिस्थितियों से बचने के लिए जरूरी है कि पैरेंट्स बच्चों की हर छोटी-छोटी गतिविधि पर ध्यान रखें.
अभिभावक इन बातों का रखें विशेष नजर
डॉ. धन्या चंद्रन के अनुसार, यदि बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगना, पढ़ाई में कंसन्ट्रेशन (एकाग्रता) कमजोर है, बहुत अधिक गुस्सा आता है, अक्सर स्कूल में बच्चों से मारपीट करने की शिकायत आ रही हैं तो माता-पिता को विशेषतौर पर एलर्ट हो जाने की जरूरत है. इस तरह की गतिविधियां बच्चों की बिगड़ती दिमागी सेहत का संकेत हो सकते हैं. यदि बच्चों की गतिविधियां लंबे समय तक ऐसी ही बनी रहती हैं या बढ़ोत्तरी होती है तो पैरेंट्स को इस बाबत मनोचिकित्सक से एक बार राय जरूर लेनी चाहिए. कई बार पैरेंट्स की लापरवाही का खामियाजा बच्चों को ता उम्र भुगतना पड़ता है.
कॉमन हुईं ADHD और ADD की समस्या
डॉ. धन्या चंद्रन के अनुसार, बच्चों में अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) और आटिज्म (Autism) की समस्या बहुत कॉमन होती जा रही है. बच्चों में इन समस्याओं के लक्षण जन्म के कुछ दिनों के बाद दिखना शुरू हो जाते हैं. मसलन, यदि आप बच्चे को देखकर हंसते हैं तो वह भी मुस्कुराता है या हंसता है. यानी, यह बच्चा स्वाभाविक प्रतिक्रिया दे रहा है. यदि बच्चा लगातार ऐसा नहीं कर रहा है तो पैरेंट्स को सतर्क रहने की जरूरत है. इसी तरीके से अन्य लक्षण दो से तीन वर्ष की उम्र में स्पष्ट रूप से दिखना शुरू हो जाते हें.
क्या है ADHD और आटिज्म की समस्या |
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अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) |
एडीएचडी अति-सक्रियता पैदा करने वाला एक मानसिक विकार है. बच्चों में इसके लक्षण 2 से 3 साल की उम्र के बीच दिखना शुरू हो जाते हैं. इस मानसिक विकार के प्रमुख लक्षणों में कंसन्ट्रेशन (एकाग्रता) में कमी, दूसरों को अनसुना करना, लगातार बात न मानना, स्कूल का होम वर्क सहित दूसरे काम सही तरीके से नहीं कर पाना, लगातार बातों को भूल जाना, अपना सामान खो देना, अत्यधिक बातूनी होना आदि शामिल हैं. एडीएचडी से पीडि़त बच्चों को बैठने में दिक्कत होती है. इस विकार के लक्षण बच्चियों की अपेक्षा बच्चों में अधिक देखा जाता है. |
आटिज्म (Autism) |
आटिज्म मानसिक विकार की एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मस्तिष्क एक साथ विभिन्न क्षेत्रों का काम करने में विफल हो जाता है. आटिज्म से पीडि़त बच्चे सामान्यतौर पर देरी से बोलना शुरू करते हैं. इन बच्चों को शब्दों और वाक्यों को बोलने में दिक्कत होती है. आसामान्य लय में बोलने वाले ये बच्चे न ही अपनी भावनाओं को जल्दी व्यक्त करते हैं और न ही दूसरे की भावनाओं को समझ पाते हैं. आटिज्म से पीडि़त बच्चे अक्सर अकेले खेलना और एकांत में रहना पसंद करते हैं. इसके अलावा, ये बच्चे मना करने के बावजूद लगातार हिलते रहना, घूमना, खुद को नुकसान पहुंचाना और हाथ फड़फड़ाने जैसी गतिविधियां दोहराते रहते हैं. |
सोशल मीडिया है मानसिक विकार का कारण?
डॉ. धन्या चंद्रन के अनुसार, बच्चों में मोबाइल और सोशल मीडिया का एडिक्शन मानिकस बीमारियों का बड़ा कारण बनता जा रहा है. अब तो यह सभी घरों का हाल है कि बच्चे अपना ज्यादातर समय स्क्रीन के सामने ही गुजारते हैं, चाहे वह मोबाइल की स्क्रीन हो या फिर लैपटाप या टीवी की. बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम और कम होती आउट डोर एक्टिविटी उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बेहद गंभीर असर डाल रहे हैं. ऐसे बच्चों में एकाग्रता की कमी और चिड़चिडाहट के लक्षण मानसिक विकार के तौर पर देखा जा सकता है.
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