World Thalassemia Day 2022: प्रत्येक वर्ष आज के दिन (8 मई) ‘विश्व थैलेसीमिया दिवस’ मनाया जाता है. हर साल इसे एक खास थीम के तहत सेलिब्रेट किया जाता है. इस वर्ष की थीम ‘बी अवेयर, शेयर, केयर’ है. थैलेसीमिया बीमारी के बारे में आज भी अधिकतर लोगों को जानकारी नहीं, इसलिए इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल यह दिवस मनाया जाता है. थैलेसीमिया दो तरह का होता है, माइनर और मेजर थैलेसीमिया. यह रोग पेरेंट्स के जरिए बच्चों में कैसे आता है, थैलेसीमिया के लक्षण क्या हैं, इसका इलाज कैसे संभव है, इस बारे में आइए जानते हैं एक्सपर्ट से.
क्या है थैलेसीमिया रोग
फोर्टिस हॉस्पिटल (कोलकाता) के कंसल्टेंट-हेमेटोलॉजी डॉ. प्रांतर चक्रवर्ती कहते हैं कि थैलेसीमिया एक जेनेटिक डिजीज है, जो पेरेंट्स के जरिए बच्चे में आता है. यदि दोनों पेरेंट्स थैलेसीमिया के कैरियर होते हैं, तो बच्चे में यह थैलेसीमिया बीमारी हो सकती है. यदि माता-पिता में से कोई एक कैरियर होगा, तो बच्चा भी कैरियर होगा, लेकिन उसमें थैलेसीमिया डिजीज नहीं होगी. इस बीमारी में खून ठीक से नहीं बन पाता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि हीमोग्लोबिन बनने का जो जेनेटिक कोड होता है, उसमें कुछ समस्या आ जाती है. मुख्य रूप से कोड में डिफेक्ट होता है. कैरियर वह होता है, जिसके जीन में थैलेसीमिया के संकेत या प्रवृत्ति पाई जाती है. कैरियर को थैलेसीमिया माइनर भी कहते हैं. कैरियर वाले बच्चे इस पर काबू पा सकते हैं. थैलेसीमिया कैरियर वाले लोग आमतौर पर स्वस्थ होते हैं और एनीमिया भी माइल्ड होता है. अगर खास टेस्ट ना कराया जाए, तो व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा कि वो थैलेसीमिया कैरियर है.
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कब होता है थैलेसीमिया रोग
डॉ. प्रांतर चक्रवर्ती कहते हैं कि यदि माता-पिता दोनों ही कैरियर हों, तो उनके बच्चे में 25 प्रतिशत थैलेसीमिया बीमारी होने की संभावना होती है. जिसमें यह बीमारी होती है, उन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिए जीवित रखा जाता है. ऐसे व्यक्ति के शरीर में बहुत अधिक आयरन जमा हो जाता है, जिसे दवा देकर बाहर निकालना पड़ता है. यदि ब्लड सुरक्षित नहीं होगा, तो इन्हें हेपेटाइटिस बी, सी, एचआईवी होने का भी खतरा बढ़ जाता है. शरीर में अत्यधिक आयरन होने से भी कई तरह की लिवर, हार्ट आदि में समस्याएं हो सकती हैं. ऐसे में सिर्फ खून चढ़ाते रहने से 25-30 वर्ष के बाद व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना भी कम हो जाती है.
थैलेसीमिया के लक्षण
डॉ. प्रांतर बताते हैं कि आमतौर पर इस रोग का जन्म के समय पता नहीं चलता है. छह महीने के बाद बच्चा जब बहुत अधिक थका और सुस्त नजर आए, ठीक से खाए नहीं, खेल न पाए, त्वचा और आंखें पीली नजर आएं, तो डॉक्टर के पास जरूर ले जाएं. इसके अलावा निम्म लक्षण भी नजर आ सकते हैं-
- बच्चों के जीभ, नाखून पिले होना
- शारीरिक विकास रुक जाना
- उम्र से छोटा नजर आना
- चेहरे का सूखना
- वजन कम होना
- कमजोरी महसूस करना
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थैलेसीमिया का टेस्ट, निदान, इलाज
डॉ. प्रांतर बताते हैं कि देश के कई राज्यों जैसे पूर्व, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, गुजरात, पंजाब जैसे राज्यों में थैलेसीमिया के मामले अधिक हैं. ऐसे में यहां के लोगों को पता होना चाहिए कि क्या-क्या टेस्ट, इलाज होते हैं. इसके लिए जरूरी है करियर स्क्रीन टेस्ट कराना चाहिए. यदि किसी व्यक्ति को पता है कि वह थैलेसीमिया कैरियर है, तो वह किसी दूसरे कैरियर से शादी ना करे. अगर कैरियर से ही शादी करना चाहे, तो प्रेग्नेंसी के दौरान 10-12वें सप्ताह में प्रीनेटल डायग्नोसिस कराएं. यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि माता-पिता दोनों ही कैरियर हैं, तो बच्चे में 25 प्रतिशित थैलेसीमिया बीमारी होने की संभावना रहती है वरना या तो कैरियर या फिर नॉर्मल बच्चा ही होगा. उसी अनुसार, भ्रूण को यदि थैलेसीमिया रोग होने का पता चले, तो भारतीय कानून के मुताबिक, उसे टर्मिनेट करने का अधिकार है. यह पूरी तरह से लीगल है, इसलिए ही प्रीनेटल डायग्नोसिस भी आया था, जिसका लोग आज गलत इस्तेमाल करते हैं.
इलाज के विकल्प में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही मौजूद है. इसके अलावा जीन थेरेपी का भी ऑप्शन है, लेकिन यह बहुत महंगा होने के साथ ही भारत में उपलब्ध नहीं है. इसमें थेरेपी के जरिए जीन का करेक्शन किया जाता है. आयरन जमने को निकालने के लिए दवाएं दी जाती हैं. डॉक्टर के रेगुलर फॉलो-अप में रहने से नॉर्मल जीवन जी सकते हैं.
वहां कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट करेंगे, तो पता चल जाएगा, साथ ही हाथ से भी डॉक्टर एग्जामिन करते हैं, क्योंकि लिवर और स्प्लीन दोनों बड़े हो जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि शरीर ठीक से खून नहीं बनाता है. ऐसे में लिवर और स्प्लीन ज्यादा काम करते हैं, ताकि ब्लड का निर्माण ठीक से हो. ऐसे में तुरंत निदान करके इलाज शुरू कर देना चाहिए, ताकि बाद में समस्या गंभीर ना हो.
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Tags: Health, Health tips, Lifestyle
FIRST PUBLISHED : May 08, 2022, 06:00 IST