नई दिल्ली. लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट-2009 (Legal Metrology Act- 2009) में मोदी सरकार (Modi Government) बड़ा बदलाव करने जा रही है. केंद्र सरकार ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ के लिए इस कानून को और सरल बनाना चाहती है. बीते सोमवार को ही दिल्ली के विज्ञान भवन में इसको लेकर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने सभी पक्षों के साथ बैठक कर संशोधन को लेकर अपनी बात रखी. इस कार्यशाला में केंद्रीय उपभोक्ता मामले व खाद्य मंत्री पीयूष गोयल (Piyush Goyal) ने लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट में संशोधन के प्रस्तावों का विरोध करने वाले राज्यों को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि कानून की खामियों की आड़ में कारोबारियों का शोषण करने वालों पर भी अंकुश लगना चाहिए. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस एक्ट में संशोधन को लेकर कुछ राज्य और केंद्रशासित प्रदेश क्यों विरोध कर रहे हैं?
बात दें मोदी सरकार उद्योग व्यापार और उपभोक्ता हितों के बीच समन्वय बनाने की जरूरत पर लगातार जोर दे रही है. इस कानून के जद में आने वाले व्यापारी या दुकानदारों की कानून को लेकर कई तरह की शिकायत थी. कारोबारियों का कहना है कि पहली ही छोटी मोटी गलती पर सीधे जेल की सजा हो जाती है, जिसे अब हटा कर जुर्माना बढ़ा देना चाहिए.
केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इस विषय को लेकर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया.
लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट-2009 में क्यों होने जा रहा बड़ा बदलाव?
पिछले कई सालों से इस कानून में संशोधन करने को लेकर विचार चल रहा था, लेकिन कभी किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन, सोमवार को हुए कार्यशाला में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सभी से बात की और इसके नफा-नुकसान को लेकर अपने विचार व्यक्त किए. हालांकि, आंध्र प्रदेश ने इस कानून में संशोधन के प्रस्ताव का खुला विरोध करते हुए इसे उपभोक्ता हितों के विरुद्ध बताया. जबकि, उड़ीसा ने इसके 60 फीसदी से अधिक संशोधनों पर अपनी सहमति नहीं दी.
राज्यों की क्या है प्रतिक्रिया
लेकिन, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों ने राज्य में उद्योग व्यापार के अनुकूल माहौल तैयार करने के लिए संशोधन को सही माना. इन राज्यों का तर्क था कि राज्य के ज्यादातर जिलों में बाट माप सिस्टम के रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस को ऑन लाइन कर दिया गया है और अब उल्लंघन के ज्यादातर मामले जुर्माना से ही निपटाए जाते हैं.

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क्यों दंडात्मक कार्रवाई का विरोध हो रहा है?
वहीं, इस लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट की खामियों को लेकर उपभोक्ता सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा कि इसके कुल 27 प्रावधानों में 23 ऐसे हैं, जिनकी अवहेलना पर दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है. 23 सख्त प्रावधानों में से 6 ऐसे हैं, जिनका पहली बार ही उल्लंघन हो जाने पर उल्लंघनकर्ता को जेल की सजा मिल सकती है. जबकि, आंकड़े बताते हैं कि पहली बार कानून का पालन करने में चूक करने वालों की संख्या लाखों में रही तो दूसरी बार गलती दुहराने वालों की संख्या दहाई में नहीं पहुंचती है. इससे उपभोक्ता हितों के संरक्षण के बजाए उद्योग और व्यापार क्षेत्र का उत्पीड़न शुरु हो जाता है.’
क्यों गैर अपराध की श्रेणी में इस कानून को लाया जा रहा है?
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने इस कानून को और सरल बनाने की दिशा में कई तरह के संशोधन करने की मांग की. कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि नाप-तोल कानून-2009 के दंडात्मक प्रावधानों को गैर अपराध की श्रेणी में लाना अब बहुत जरूरी है. कानून में तकनीकी गलतियों के लिए भी आपराधिक धाराएं हैं. इससे देश भर के व्यापारी प्रताडि़त होते हैं. इसमें कारावास तक का सजा को जो प्रावधान है वह गलत है.
इस कानून में अभी तक क्या नियम हैं
कम वजन तौलने वाले दुकानदार पर माप-तौल विभाग जुर्माना लगाती है. अगर दुकानदार जुर्माना नहीं देता है तो उसके विरुद्ध एफआईआर दर्ज करती है. इसके साथ दुकानदारों को हर साल बटखरे का सत्यापन कराना होता है. बटखरा घीस जाने के कारण औसतन एक वर्ष में 20 ग्राम वजन कम होता है. इस खामी को दूर करने के लिए पुराने बटखरों में रांगा भरकर उन्हें मानक के अनुरूप बनाया जाता है.

संशोधन के बाद घटतौली और बिना जांच किए हुए बाट से सामान तौलने पर जेल की सजा नहीं होगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
क्या-क्या बदल जाएंगे?
अब जो संशोधन का प्रस्ताव है, उसमें घटतौली और बिना जांच किए हुए बाट से सामान तौलने पर जेल की सजा नहीं होगी. इस तरह के मामलों में सरकार अब सिर्फ जुर्माना और लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई ही करेगी. इसके साथ ही केंद्र सरकार विधिक माप विज्ञान अधिनियम को गैर आपराधिक बनाने की तैयारी कर ली है. संशोधन के बाद अगर कोई कंपनी, डिस्ट्रीब्यूटर या दुकानदार किसी सामान पर अधिकतम मूल्य से अधिक कीमत वसूलता है तो उस पर पहली बार कम से कम 5 हजार रुपये जुर्माना लगाया जाएगा, लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं होगी. बता दें कि पहली शिकायत पर यह राशि अधिकतम 29 हजार तक हो सकती है, लेकिन दूसरी शिकायत या फिर उसके बाद शिकायत करने पर यह राशि एक लाख तक हो सकती है.
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इसके साथ ही संशोधन के बाद बिना जांच वाले बाट इस्तेमाल करने पर अब 10 लाख रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है. अभी तक पहली बार गलती करने पर जुर्माना और दूसरी बार छह माह तक की जेल और जुर्माना दोनों शामिल थे. इसके साथ वजन या माप के साथ छेड़छाड़ पर भी दस लाख रुपये तक जुर्माना किया जा सकता है. बार-बार यही काम करने पर केंद्र या राज्य सरकार द्वारा लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. अभी ऐसे मामलों में पहली बार जुर्माना और दूसरी बार शिकायत मिलने पर छह से एक साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान थे.
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Tags: Amending the law, Modi government, Piyush goyal, PM Modi, Power consumers
FIRST PUBLISHED : May 11, 2022, 19:30 IST